वह अप्रैल की दोपहर थी। मैं बरामदे में बैठा आसमान को देख रहा था। कितना खाली था सब कुछ। ना सिसकियां बची थी, और ना कहीं खनकती आवाज। बिल्कुल शुष्क मेरी जिंदगी की तरह। मैं 3 साल बाद बरेली से अपने घर जयपुर लौटा था। लेकिन इन 3 सालों में कुछ भी नहीं बदला था।
मैं अपने ख्यालों में गुम था कि, तभी अंदर से कुछ टूटने की आवाज आई। में जोर से बोला अरे क्या तोड़ दिया? भैया वह गुल्लक टूट गया है। अंदर से सोनू की आवाज आई। मैं अंदर गया तो गुल्लक छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटा हुआ नीचे फर्श पर पड़ा था। मैं वही इन टुकड़ों के साथ पास बैठ गया। और अतीत में झांकने की कोशिश करने लगा। कितना कुछ जुड़ा था इस गुल्लक के साथ। मेरी जिंदगी के कुछ हसीन पल भी इस गुल्लक के साथ जुड़े हुए थे।
यह गुल्लक मुझे स्नेहा ने दिया था। इस गुल्लक में मौजूद एक सिक्का भी मुझे स्नेहा ने ही दिया था। गुल्लक के टुकड़ों के बीच एक सिक्का पड़ा था।
मोहब्बत का सिक्का
मैं इस गुल्लक का क्या करूंगा? मुझसे तो वैसे भी कोई बचत नहीं होती है।
तभी इस नेहा ने कहा तुम मत करना बचत तुम्हें कह कौन रहा है? बचत करने के लिए तुम इस गुल्लक में अपनी उन चीजों को रखना जिन्हें तुम हमेशा सहेज कर रखना चाहते हो। स्नेहा ने अपने कान के पास आए बालों को पीछे करते हुए कहा।
तभी स्नेहा ने अपनी मुट्ठी से एक सिक्का निकाला और गुल्लक में उसे डाल दिया। देखो इस तरीके से तुम अपनी यादों को इसमें सहेज सकते हो।
मैंने कहा यह क्या है?
स्नेहा बोली यह हमारी दोस्ती का सिक्का है।
मैं भी एक सिक्का इस गुल्लक में डाल देना चाहता था। लेकिन दोस्ती का नहीं मोहब्बत का सिक्का। मैं स्नेहा को बचपन से जानता था। और हम बचपन से अच्छे दोस्त थे। लेकिन यह दोस्ती कब मोहब्बत में बदल गई? मुझे पता ही नहीं चला। मैं स्नेहा को बोलना चाहता था लेकिन बोल नहीं पाया था।
स्नेहा पड़ोस के शर्मा अंकल की बेटी थी। हमारे घर एक साथ जुड़े हुए थे। तभी मैं यादों से बाहर आया और अपनी छत के ऊपर चला गया। मैं छत के उस कोने की तरफ चला गया जहां से स्नेहा के घर का आंगन नजर आता था। पेड़ की छांव में इस स्नेहा बैठी थी।
वह अपनी 5 साल की बेटी के साथ पेड़ की छांव में बैठी थी। स्नेहा को देख कर भी मैं उससे मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था।
और वापस घूम कर नीचे आने लगा। तभी पीछे से आवाज आई विकास, यह स्नेहा की आवाज थी।
यादों का कारवां
जैसे ही स्नेहा ने मुझे आवाज लगाई। मैं एक बार फिर से यादों में चला गया। मैं इन सभी यादों को भुला देना चाहता था। यह वह सभी कड़वी यादें थी। जिन्हें में अपने आसपास भी नहीं रहना चाहता थाा। लेकिन यह सभी यादें मेरे सीने से चिपकी हुई थी। मानो छोड़कर जाना ही नहीं चाहती हैं।
मुझे याद है आज भी। वह दिन जब इस नेहा की शादी के बाद उसके घर में शुरू हुई थी। स्नेहा अपने पति अमर की तस्वीर लेकर मेरे पास आई थी। उसने अमर की तस्वीर मुझे दिखाई। वह बहुत खुश नजर आ रही थी। लेकिन मेरी सारी उम्मीदें मिट्टी के घरौंदे की तरह टूट गई थी। उसे इतना खुश देखकर मैं उसे बता भी नहीं पाया था कि उसके बारे में मैं क्या सोचता हूं?
स्नेहा ने अमर के बारे में मुझे बताते हुए कहा कि आर्मी ऑफिसर है। देखो तस्वीर में वृद्धि में कितना सुंदर लग रहा है। जब स्नेहा की शादी की रस्में शुरू हुई तो, मैं हर काम में मदद करने लगा। अमर का हाथ स्नेहा के हाथ में देखकर मैं खुद को रोक नहीं पाया और सभी काम छोड़ कर घर दौड़ा चला आया। घंटों तकिए में मुंह छुपा कर रोने लगा। स्नेहा शादी के बाद अमर के साथ चली गई और पीछे छोड़ गई यादों का एक पूरा कारवां।
उन दिनों मेरा आईएएस एग्जाम का रिजल्ट आया था। मेरा सिलेक्शन हो गया था। लेकिन अभी भी वह खुशी नहीं थी। मेरी पोस्टिंग बरेली हो गई थी। इस वजह से मैं कम ही जयपुर आ पाता था। लेकिन जब भी जयपुर आता था स्नेहा की यादें मुझे एक बार फिर से सताने लगती थी।
तभी पीछे से आवाज आई विकास, अब आओगे भी या वहीं पर खड़ी रहोगे। मैंने जबरदस्ती अपने चेहरे पर मुस्कान लाई। मैं स्नेहा को देख रहा था। उसका चेहरा बिल्कुल बेनूर नजर आ रहा था और साड़ी का कलर भी उड़ा हुआ था।
वक्त के थपेड़ों ने उस पर भी क्या कम जुल्म ढाए थे। जयपुर गुलाबी शहर है। चारों तरफ हर कलर की ओढ़निया आपको देखने को मिल जाएगी। लेकिन स्नेहा की ओढ़नी बिल्कुल बेनूर और बेरंग थी। जैसे चारों तरफ किसी ने रेगिस्तान बिछा दिया हो।
कब आया था तू बरेली से स्नेहा ने पूछा?
मैंने कहा मैं कल ही आया था।
तो फिर मिलने क्यों नहीं आया?
मैं उसके इस सवाल पर हर बार अपनी नजरें चुरा लेता था। लेकिन मैंने इस बार उसको ही वापस सवाल पूछ लिया। कैसी हो तुम?
ठीक हूं। मुझे क्या हुआ है? स्नेहा ने अपनी डबडबाई आंखें अपनी किताब में गड़ा ली।
मैं स्नेहा की सुनी मांग और खाली हाथों को देख नहीं पा रहा था। शादी के बाद भी स्नेहा से मेरी बहुत बार मुलाकात हुई थी। अमर 3 साल पहले बॉर्डर पर शहीद हो गया था। तब से मैंने स्नेहा से मुलाकात नहीं की। मेरी कभी हिम्मत ही नहीं हुई टूटी हुई स्नेहा से मिलने की। तभी पीछे से आवाज आई अरे विकास तू कब आया बेटा? स्नेहा की मां ने आवाज लगाई।
मैं स्नेहा की मां से कुछ कहता। इससे पहले ही उन्होंने मुझे कहा तू बैठ में तेरे लिए चाय लेकर आती हूं। इस दौरान मेरे और स्नेहा के बीच में कोई बात नहीं हुई। स्नेहा कभी चुप नहीं रहती थी। वह हमेशा बातें करती रहती थी। आज स्नेहा पूरी तरीके से बदल चुकी है।
बहुत दिनों बाद घर आया है। हां आंटी। काम से फुर्सत ही नहीं मिलती है। इस बार ही कुछ काम से ही घर पर आया हूं।
अरे इतना काम में मत उलझ। शादी कर ले। एक बार फिर से आंटी ने मुझे शादी करने के लिए कहा था। लेकिन हमेशा की तरह मेरे पास कोई जवाब नहीं था।
बेटा शादी कर ले। जिंदगी इस तरीके से नहीं कटती है। आंटी ने स्नेहा की तरफ उदासी भरी नजरों से देखते हुए कहा।
आंटी ने एक बार फिर स्नेहा की तरफ उदास भरी निगाहों से देखते हुए कहा। तू समझा ना बेटा इसे। यह शादी कर ले। अभी इसके सामने पूरी जिंदगी पड़ी है। आंटी स्नेहा की शादी की बात कर रही थी। स्नेहा ने धीमी आवाज में कहा। मां आप ने फिर वही बात शुरू कर दी है।
आंटी ने कहा तो फिर बता मैं क्या करूं? तभी स्नेहा की बेटी रूही वहां खेल रही थी। वह मिट्टी के घरों को बना रही थी। मैंने कहा बचपन में मैं और स्नेहा भी इसी तरीके के घर बनाया करते थे। तब कहां पता था की जिंदगी भी इन मिट्टी के घरों की तरह ही है। कोई भी तूफान आए और इन्हें बहा ले जाता है।
इस बात पर किसी ने कुछ नहीं कहा। काश मैं उसके लिए कुछ कर पाता। उसकी हंसी के लिए और उसके खुशहाल जीवन के लिए।
वो स्नेहा जो किताबों को बिल्कुल भी महत्व नहीं देती थी। आजकल किताबे पढ़ रही थी। अपना उदास मन इन किताबों में छुपाई रहती है। स्नेहा को बाहर घूमना पसंद था। म्यूजिक सुनना पसंद था। वह कभी-कभी मेरी किताबें पढ़ने की आदत पर गुस्सा कर देती थी। तुम क्या सारे दिन किताबें पढ़ते रहते हो? सहादत हसन मंटो की किताबें है। तुम्हें पता भी है सहादत हसन मंटो की किताबों में हम हमारा पूरा जीवन देख सकते हैं।
अच्छा देखता होगा! लेकिन जिंदगी जीवन जीने की चीज है। किताबों में पढ़ने की नहीं। स्नेहा कहती और मेरे हाथ से किताब छीन लेती।
इसी तरीके से जब मैं स्कूल की छुट्टी के दिन घर पर सोता रहता, वह मुझे जबरदस्ती उठाकर मॉर्निंग वॉक पर ले जाती। दोपहर में मेरे टेलीविजन को अपना सिनेमा हॉल बना लेती थी। उसकी फिल्म देखने की जिद में मैंने कितने ही क्रिकेट मैच देखने छोड़े थे। आज मैं उसे स्नेहा को ऐसे उदास नहीं देख पा रहा था। दोपहर में जब छत पर गया तो रूही नजर आई। वह उदास झूले पर बैठी थी।
My mom is very bad. वह मुझसे बात क्यों नहीं करती है? वह हमेशा सेंड रहती हैं। रूही ने मुंह बनाते हुए कहा। मैंने कहा नहीं बेटा मॉम इज नॉट बैड। शी लव्स यू वेरी मच. मैंने खुद को संभालते हुए कहा। फिर वह मेरे साथ खेलती क्यों नहीं है? वह हंसती क्यों नहीं है? रूही ने कहा।
बेटा हम गार्डन में घूमने चलें। मैंने रूही से कहा। तभी वहां पर स्नेहा आ गई। तभी रूही ने कहा क्या मम्मी भी हमारे साथ चलेगी? रूही, स्नेहा से जिद करने चलने लगी। मम्मी प्लीज आप भी चलो ना गार्डन? प्लीज मम्मी प्लीज! स्नेहा ने होले से मुस्कुराते हुए कहा ठीक है चलो।
मुस्कुराहट
रूही अपने उम्र के बच्चों के बीच खेलते हुए बहुत खुश नजर आ रही थी। वह अपनी मम्मी की तरफ हाथ हिला रही थी। बच्चों की एक हंसी भी मेरे और स्नेहा के बीच की मौन को नहीं तोड़ पा रही थी।
रूही को इस तरीके से खुश देख कर स्नेहा भी धीरे-धीरे मुस्कुराने लगी। अच्छी लग रही हो मुस्कुराहट के साथ। मैंने कहा। तुम्हें अब आंटी की बात मान लेनी चाहिए। तुम्हें जिंदगी में आगे बढ़ना चाहिए। मैंने स्नेहा से कहा मैं रुकी कहां हूं विकास! स्नेहा ने कहा।
तुम रूही की मुस्कुराहट देख रहे हो। उसकी खुशी देख रहे हो। मैं उसे जिंदगी में दुगनी खुशी देख देना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि उसे कभी भी अपने पापा की कमी महसूस ना हो। मैं रूही का हाथ थामे हुए जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती हूं। इन सब बातों के आगे मैंने कुछ भी नहीं कहा।
मैं स्नेहा के सवालों का जवाब दे सकता था। लेकिन मैं इस समय रूही की मां से बात कर रहा था। उसे डर था कि कहीं उसका एक फैसला रूही के हिस्से की खुशियां उससे ना छीन ले।
स्नेहा ने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया। उसके आंसू मेरा कमीज भिगोते रहे।
मोहब्बत की परत
अब मेने दिन का सारा वक्त रूही के साथ बिताने लगा। अब मैं और रूही वही खेल खेलते थे, जो मैं और स्नेहा बचपन में खेला करते थे।
मैं और रूही कभी मिट्टी के घरोंदे बनाते थे तो कभी आम के पेड़ों से पत्थरों के निशानों द्वारा आम तोड़ते थे। मैं चाहता था कि वक्त यूं ही ठहरा रहे। लेकिन वक्त को यह मंजूर नहीं था। मेरी छुट्टियां खत्म हो रही थी। और मुझे वापस नौकरी पर जाना था। यह बात मैंने बाद में टहलते हुए स्नेहा को भी बता दिया था। मैं जा रहा हूं 2 दिन बाद। मेरी छुट्टियां खत्म हो रही है मैंने कहा।
इतनी जल्दी स्नेहा ने कहा।
एक पल के लिए मुझे लगा कि इस नेहा मुझे रोक लेना चाहती है। फिर उसने उदास मन से कहा, हां तुम्हारी नौकरी भी है। तुम्हें जाना तो होगा ही।
जब रूही ने मेरे जाने के बाद सुनी तो वह मुझसे नाराज हो गई। उसने पक्की कट्टी कर ली मुझसे।
मैं रात को लेटा लेटा सोच रहा था कि मैं क्यों जा रहा हूं वापस? मेरा सब कुछ तो यही छूट रहा था। स्नेहा यही छूट रहा रही थी। फिर वापस जाने का दिन भी आ गया। मैं जल्दी-जल्दी लैपटॉप कपड़े बैग और दूसरे सामान पैक कर रहा था। तभी पीछे से स्नेहा आई और धीरे से बोली विकास!
मैं उसे देख कर बोला हां! आओ ना अंदर क्या बात है,?
जा रहे हो? कब लौट कर आओगे?
वापस हां देखता हूं। काम से फुर्सत मिलते ही वापस आ जाऊंगा। मैंने उदास होकर कहा। दरअसल मुझे भी नहीं पता था कि मैं कब तक वापस आ पाऊंगा! यह कहते-कहते स्नेहा मेरे बेड के पास बैठ गई और मेरा सामान वापस निकालने लग गई।
मैंने कहा स्नेहा तुम मेरा सामान वापस क्यों निकाल रही हो? मैंने उसकी कलाई पकड़ कर कहा।
वह तुमसे बात करते हुए मुझे ध्यान ही नहीं रहा। फिर वह मेरा सामान वापस बैग के अंदर रखने लग गई। मैं उसके सामने फर्श पर जाकर बैठ गया।
दरअसल में जाना नहीं चाहता हूं। गले में मेरी आवाज अटक गई।
आज मुझे बचपन वाली स्नेहा नजर नहीं आ रही थी। एक अलग ही स्नहा आज मुझे नजर आ रही थी।
तो फिर रुक जाओ ना। तुम क्यों जा रहे हो?
मैं तुम्हें दोबारा खोना नहीं चाहता स्नेहा मैंने उदास होकर कहा।
दोबारा इससे तुम्हारा क्या मतलब है?
तुम्हारी शादी के समय मैंने एक बार तुम्हें खो दिया था। लेकिन मैं अब तुम्हें नहीं खोना चाहता हूं।
यह सुनते ही स्नेहा मेरे बैग से सामान वापस निकालने लगी। मेरे कपड़े जूते लैपटॉप और स्नेहा का लाया हुआ मुरब्बा और वह ₹1 का दोस्ती का सिक्का भी। जिस पर अब मोहब्बत की परत चढ़ चुकी थी।