बस एक जिंदगी

 बस के कोने की आखिरी सीट खाली थी। मैं हैरान रह गया कि यह सीट कैसे खाली है? क्योंकि इस समय बस में सीट खाली मिलना किसी करिश्मे से कम नहीं था। यह शाम का समय होता है। और इस समय लोग अपने घरों की तरफ जा रहे होते हैं। लोग पसीने से भीगे हुए थे और एक दूसरे पर चढ़े जा रहे थे। इसके बावजूद बस के कोने की यह सीट खाली थी।

लोगों की इस भीड़ को देखकर मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था। यह किस तरीके की जिंदगी है मेरी? मास्टर की जिंदगी ऐसे ही होती है। कितने ही बच्चों का हर साल भविष्य बनाता हूं। उनकी किस्मत बदल जाती है। लेकिन मेरे सपने वही के वही है। एक भी सपना आज दिन तक पूरा नहीं हुआ। एक स्कूटर होता तो इस भीड़ का सामना नहीं करना पड़ता।

मैं मुश्किल से अब उस सीट की तरफ पहुंचना शुरू कर दिया। क्योंकि वह सीट खाली थी। मुश्किल से उस सीट तक पहुंचा। पास में आकर देखा तो सीट का रेगजीन फटा हुआ था। और नीचे का लोहा बाहर निकला हुआ था। हालांकि मैंने हार नहीं मानी। सोच रहा था कि अब इतनी दूर तक मुश्किल से पहुंचा हूं तो, बैठूंगा जरूर।

मैंने उस सीट को सही शुरू करना शुरू किया था। तभी मुझे मेरी नजर सीट पर रखे हुए एक लिफाफे पर पड़ी। मैंने लिफाफे को ध्यान से खोला। उसमें ₹2000 के कुछ नोट पड़े हुए थे। यह देखकर मैं चारों तरफ देखने लगा। इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में फुर्सत किसको है? कौन इस तरफ देख रहा है। मैं ₹2000 के नोट देख कर मुस्कुराने लगा। मैं अंदाजा लगाने लगा कि कितने नोट होंगे? मैंने अंदाजा लगाया कि ₹2000 के कम से कम 50 नोट तो होंगे। इस तरीके से मैं मन ही मन गिनने लगा यह लगभग ₹100000 होगी  मैं सोचने लगा कि आज तो मेरी सच में लॉटरी लग गई है। जो कि मैंने किताबों और अखबारों में विज्ञापन में देखी थी।

मैं फिर एक पल के लिए सोचने लगा। क्या मैं चोरी कर रहा हूं? फिर मैं सोचने लगा यह चोरी थोड़ी है? मैंने मुझे पैसे मिल गए और मैंने रख लिया। इसके बाद धीरे से लिफाफा निकालकर मैंने अपने बैग में रख लिया।

मैं उन रुपयों को लेकर छोटे छोटे सपने देखने लगा। बच्चा रोज बोलता है कि साइकिल मोहल्ले में सभी बच्चों के पास है। केवल मेरे पास ही साइकिल नहीं है।

 मुन्नी कहती है कि मुझे झालर वाली फ्रॉक चाहिए। अब मैं उसे एक फ्रॉक भी दिला पाऊंगा। साथ ही साथ शीतल की आंखें भी मेरी तरफ आ गई। जो कि कंगन के लिए पिछले कुछ सालों से जिद कर रही थी। शायद मैं अब इन पैसों से उसके लिए कंगन भी लेकर आ पाऊंगा।

जिंदगी की कीमत

मैंने लिफाफा अभी अपने बैग में रखा ही था कि, एक बुजुर्ग आ गए। उन्होंने जल्दी बाजी में मुझसे पूछा क्या आपने यहां पर एक लिफाफा देखा है? मैंने बिना कुछ बोले सीट से उठ गया। वह इधर-उधर उस लिफाफे को देखने लगे।

बुजुर्ग मुझसे कहने लगा अभी अभी मैं पिछले राउंड में इस बस में बैठा था। अस्पताल जाने के लिए इस बस में बैठा था। और ₹100000 का लिफाफा भी यही रखा था। तभी कंडक्टर ने मेरे बस स्टॉप का नाम पुकारा। और मैं भीड़ को चीरते हुए बाहर निकलने की कोशिश करने लगा।

मैं भीड़ से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था। तभी बुजुर्ग का फोन बजा। बुजुर्ग ने जैसे ही फोन उठाया बोला मैं अभी पैसे लेकर आ रहा हूं बेटा हॉस्पिटल। तुझे कुछ भी नहीं होगा। मैं एक पल के लिए रुका और पीछे मुड़ा।

मैंने अपने जेब से वह लिफाफा निकालते हुए बुजुर्ग की तरफ आगे बढ़ाया। और कहा क्या आपका यह लिफाफा है? यह देखकर बुजुर्ग के मन में थोड़ी तसल्ली आई। हां हां यह मेरा लिफाफा है। मैं अभी तक मन में जितनी भी उम्मीद पाल रहा था। सब टूट चुकी थी। लेकिन शायद एक नई जिंदगी मिल चुकी थी। जो कि उस बुजुर्ग से और उसके परिवार से जुड़ी हुई थी।

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