सुबह की ठंडी हवा के साथ शंख की आवाज दूर-दूर तक फैल गई। मैं घाट से नीचे उतरता हुआ तेज दौड़ लगा रहा था। घुटनों पर बैठकर मैंने नर्मदा नदी का पानी हाथों की प्याली बनाकर भर लिया। एकदम कंचन पानी मेरे हाथ की एक एक लकीर साफ दिखाई दे रही थी। कुछ पानी से मैंने अपना मुंह धोया और बाकी का पानी हवा में उछाल दिया। पास ही में बनी मेरी दुकान के में शटर खोलने लगा।
सुबह के 6:00 बज चुके थे। मंदिर के कपाट खुल जाएगा। दुकान ज्यादातर सुबह और शाम को ही चलती थी। जब भक्त घंटी की आवाज सुनकर दौड़े चले आते थे। मंडी से लाए हुए फूलों को मैंने एक जगह पर रख दिया। मालाओं को सुलझा कर अलग-अलग जगह पर रख दिया। अलग-अलग प्रकार की मालाएं कुछ लंबी मालाएं और कुछ छोटी मालाएं। छोटी-छोटी टोकरी भी बना ली। जो कि दर्शन करने वाले शौक से खरीद कर ले जाते हैं। पापा से मिली मुझे यह दुकान बहुत पसंद है। बचपन से मुझे यही बैठना पसंद है।
स्कूल की छुट्टी होने के बाद में सीधा दुकान पर आ जाता था। फूल मालाएं और किताबें ही मेरे पास मौजूद होती थी। पापा पंडिताई करते थे तो घर में किताबें भी पढ़ने को मिलती थी। उसके बाद में अपनी पसंद की कुछ और पुस्तकें भी पढ़ता था। महीने के अंत में पापा मुझे मेरे हिस्से के पैसे देते थे। मेरी पॉकेट मनी। पैसे मिलते ही मैं किताबों की दुकान पर दौड़ा चला जाता था। निर्मल वर्मा की कहानियां मुझे खासतौर पर पसंद थी। शिवानी की कहानियां मुझे पहाड़ों पर पहुंचा देती थी।
मैं सोचता रहता था कि समुद्र का खारापन कैसा रहता होगा। समुद्र कितना बड़ा होगा? पहाड़ों पर बर्फ कैसे जमी रहती है? किताबे मुझे प्यार के हर रंग से सराबोर कर देती थी।
पापा मुझे जैसे ही दुकान के आसपास देखते थे डांटने लग जाते थे। कहते थे यदि नहीं पड़ेगा तो इंजीनियर कैसे बनेगा। तू अपनी ट्यूशन क्लास में क्यों नहीं जाता है? मुझे तो किताबे पसंद थी और फूल बेचना पसंद था।
मैं दुनिया को बनते हुए देखना चाहता था। एक सुंदर फूल की तरह। बस यही तो मेरी दुनिया थी। मेरा मानना है कि जो शहर नदी के किनारे बसे होते हैं। या जिन शहरों के बीच में तालाब होते हैं। उनकी तासीर बड़ी मीठी होती है।
पापा धीरे-धरे डिग्री इकट्ठी करने की जिद को छोड़ चुके थे। वह अपनी छोटी फूलों की दुकान को बेचकर सदर बाजार में एक बड़ी दुकान लेने वाले थे। वह मुझे बहुत सारी चीजें बता रहे थे। कपड़ों की दुकान में ज्यादा मुनाफा होगा या किसी और आइटम की दुकान में ज्यादा मुनाफा होगा। लेकिन मैंने उन्हें फूलों की दुकान खोलने के लिए मना लिया। मैं अपने आप को दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान मानने लग गया।
मेरी दिनचर्या लगभग निश्चित थी। मैं फूलों के गुच्छे बनाता और ग्रीटिंग कार्ड बना था। ग्रीटिंग कार्ड्स को अनजाने रास्ते पर पहुंचा देता था। इन सबके अलावा मेरा एक और काम था। इन फूलों के साथ में मैसेज पहुंचाना। एक बार तो एक बहुत अच्छा मैसेज मेरे सामने आया। डियर सुनीता तुम्हारे लिए लगता है कोई कलर बना ही नहीं है। इसीलिए तुम्हारे लिए सफेद फूल।
में सोचने लगा कि जब लड़की इन फूलों को लेगी तो उसकी आंखें किस तरीके से चमक जाएगी।
फूलों के साथ मिलने वाले इन नोट्स को में एक डायरी में दर्ज कर लेता था। एक रात को मैं सोच रहा था कि यह लव नोट्स किसी तरीके से एक खजाना बन जाएंगे। एक रात में अपनी दुकान का शटर बंद करने ही वाला था कि, एक महंगी काली रंग की कार मेरी दुकान के सामने आकर रुकी। एक सज्जन बाहर निकले। जो कि लंबे पूरे थे। देखने में भी सुंदर लग रहे थे। वह जैसे ही आए। मैं उन्हें तरह-तरह के फूल दिखाने लगा। मैं सोच रहा था कि यह कोई महंगा फूल खरीदेंगे।
उन्होंने मुझसे पूछा एक गुलाब का गुलदस्ता कितने दिन चल सकता है। मैं बोला यदि एयर कंडीशन रूम हो तो 10 से 15 दिन तक चल सकता है। उन्होंने कहा ठीक है तुम इस पते पर यह गुलदस्ता पहुंचा देना। बाकी गुलदस्ते के साथ नोट्स क्या लिखने हैं यह मैं तुम्हें सुबह फोन पर बता दूंगा। हर 10 दिन में तुम्हें एक गुलदस्ता भेजना है। जब मैंने उस कार्ड पर पता देखा तो उस शहर के सबसे महंगे इलाकों में से एक घर का पता उस पर लिखा हुआ था। मैं सोच रहा था कि यह व्यक्ति सुबह नोट्स में मुझे क्या भेजेगा? यह सोचते हुए ही मैं रात को सो गया। जैसे ही सुबह उठा एक बार फिर से मैं उसी कस्टमर के बारे में सोचने लगा। क्या वह अपनी प्रेमिका को कोई खत लिख रहा है? लेकिन फिर खयाल आया उसकी बूढ़ी मां भी हो सकती है। जिसे वह मजबूरी में छोड़कर चला गया हो या अपनी बेटी को कोई खत लिखा हो।
पहला खत
सुबह जब मैं दुकान पर पहुंचा तो फूलों की गाड़ी मेरा इंतजार कर रही थी। इन दिनों शादियों का सीजन था। शादियों के सीजन में गुलाबो और दूसरे फूलों की मांग ज्यादा होती थी। बारात के लिए जाने वाली गाड़ियों को सजाने का काम भी मैं करता था। दूल्हा और दुल्हन के नाम गाड़ी पर फूलों से लिखे जाते थे। पहले तो केवल दुल्हन के हाथ में मेहंदी के बीच में कहीं पर दूल्हे का नाम लिख दिया जाता था। इसे ही शुभ माना जाता था। लेकिन अब प्यार को इजहार करने के क्या-क्या तरीके आ रहे हैं।
तब तक दुकान पर मेरी मदद करने के लिए दोनों लड़के भी आ चुके थे। यानी कि डिलीवरी बॉय। दोनों बहुत ही हंसमुख थे। और हमेशा खुश रहते थे। मैंने उन दोनों को इसी शर्त पर काम पर रखा था कि वह हमेशा खुश रहेंगे। मैं फूलों के साथ में एक खुशनुमा चेहरे को भी पहुंचाना चाहता था। सोचिए कि यदि कोई मोहब्बत में है और उसने फूल भेजे हैं तो, मुरझाए हुए चेहरे के साथ फूल देना इतना खराब लगेगा।
तभी एक व्यक्ति का मेरे पास मैसेज आया। अनुभव सिन्हा जिन्होंने कल मुझसे एक मैसेज डिलीवर करने का वादा करके गए थे उन्होंने मैसेज में लिखा था प्रिय पत्नी,
अगर तु मुझसे शर्माती रहेगी,
मोहब्बत हाथ से जाती रहेगी ।।
यह जंगली फूल मेरे बस के नहीं है,
यह लड़की यूं ही जज्बाती रहेगी।।
मैं जल्दी-जल्दी गुलदस्ता तैयार करने लगा। तभी मुझे अनुभव जी की बात याद आ गई। हर 10 दिन में एक गुलदस्ता भेजना है। यकीनन यह सौदा दिलचस्प रहेगा।
मैं सुबह-सुबह तैयार हो रहा था। तभी मुझे याद आया कि अनुभव जी की पत्नी को गुलदस्ता भेजें आज 10 दिन हो चुके हैं। मैं सोच रहा था कि उनकी पत्नी बहुत ही खूबसूरत होगी। वह क्या काम करते होंगे ? फिर सोचा की नई नई शादी हुई होगी। यह सब कुछ सोचते हुए ही मैं तैयार हो रहा था।
सबसे पहले मैंने सिन्हा जी की पत्नी के लिए एक गुलदस्ता तैयार किया। मैं सोच रहा था कि आज किस तरीके के रंगों वाला गुलदस्ता भेजूं। अब मुझे क्या पता उन्हें किस तरीके के फूल पसंद है? यदि वह यह भी बता देते तो मेरे लिए आसानी हो जाती। या सिन्हा जी की पत्नी मुझे खुद बता देती कि उन्हें किस तरीके के गुलदस्ते पसंद है? फिर मैं सोचने लगा कि क्या मैं उनकी पत्नी को खुद फोन करके पूछ लूं, कि उन्हें किस तरीके से गुलदस्ते पसंद है? लेकिन फिर सोचा कि नहीं नहीं यह गलत होगा। मुझे क्या पढ़ा है? मेरे अकाउंट में बस हर महीने गुलदस्तों के पैसे जमा हो जाने चाहिए। मेरे लिए इतना ही काफी है। यह सोचते हुए में एक लाल गुलाब का गुच्छा तैयार करने लगा।
अंडिलीवर्ड
इस तरीके से मै सिन्हा जी की पत्नी को लगातार तीन महीने तक गुलदस्ते भेजता रहा। अब तक कुल 9 गुलदस्ते भेज चुका था। नहीं नहीं शायद 10 गुलदस्ते भेज चुका था। एक बार उन्होंने अपनी पत्नी के जन्मदिन पर एक बड़ा गुलदस्ता भेजने के लिए कहा था। यह लगातार चौथा महीना था। जब मैं सिन्हा जी की पत्नी के लिए गुलदस्ता भेजने की तैयारी कर रहा था। मैं यहां वहां बहुत सारी गुलदस्ते भेजता रहता था। लेकिन सिन्हा मेरी दिल में कहीं बैठ गए थे।
लेकिन इस बार सिन्हा जी का कोई मैसेज मेरे पास नहीं आया था। मैं उनसे बार-बार मैसेज करके पूछ रहा था कि, इस बार मैसेज में क्या लिखना है? लेकिन मैसेज डिलीवर ही नहीं हो रहा था। फिर मैं एक गुलदस्ता तैयार करने लगा। इस बार मैंने रजनीगंधा के गुलदस्ते को तैयार किया। रजनीगंधा के फूल बहुत खूबसूरत लग रहे थे। फिर मैंने एक कार्ड निकाला। हमेशा की तरह उस पर लिखा प्रिय पत्नी, पर फिर पता नहीं क्या सूझी कि एक शेर भी उस पर लिख दिया।
कुछ खटकता तो है दिल में मेरे रह रह कर।।
अब खुदा जाने की याद है या दिल तेरा।।
गुलदस्ते को देने गए डिलीवरी ब्वॉय काम में इस बार ना जाने क्यों इंतजार करने लगा? जैसे ही डिलीवरी बॉय वापस आया मैंने उससे पूछा क्या वह गुलदस्ता देख कर खुश हुई? डिलीवरी ब्वॉय ने कहा हां वह हमेशा गुलदस्ता देखकर खुश हो जाती हैं। सबसे पहले कार्ड पढ़ती हैं। उसके बाद मुस्कुराकर थैंक यू बोल देती हैं। फिर मैं हमेशा सोचने लगा कि वह कार्ड देख कर कितना खुश होती होंगी? और किस प्रकार से हंसती होंगी।
हल्का सा मोड़़
कभी-कभी जिंदगी हल्का सा मोड़ लेती है। यह कोई चौराहा नहीं होता है। बल्कि आप रोशनी की तरफ चल देते हैं। खुशियों में थोड़ा सा इजाफा हो जाता है। कुछ ऐसे ही दौर से मैं भी गुजर रहा था।
इस बार भी सिन्हा जी का कोई मैसेज मेरे पास नहीं आया था। मैं इस उलझन में था कि उन्होंने अभी तक मैसेज क्यों नहीं भेजा। फिर सोचा कि दोनों के बीच झगड़ा हुआ होगा। या फिर सिन्हा जी अपनी धर्मपत्नी को कोई मौन मैसेज भेजना चाहते होंगे। यह सब सोचते सोचते ही न जाने क्यों मैंने एक गुलदस्ता तैयार कर दिया। इस बार मैंने बड़े-बड़े कलम कमल के फूलों से एक गुलदस्ता तैयार किया। कमल बहुत खूबसूरत लग रहे थे। अब फिर से एक नोट की बारी थी।
मैं सोच रहा था कि कोई इमोशनल नोट लिख दूं। लेकिन फिर सोचा कि ऐसे ही कोई नोट कैसे लिख दूं। डिलीवरी ब्वॉय अपने सभी गुलदस्ते डिलीवर कर के वापस आ गया था। साइड में हमारा दुकान का कार्ड लटक रहा था। जिस पर लिख रखा था वी डिलीवर इमोशंस। साइड में एक और कार्ड रखा हुआ था। जिस पर लिखा था शुक्रिया।
पहली बार मिसेज सिन्हा की तरफ से कोई जवाब आया था। अब तो यह सिलसिला निकल पड़ा था।
अब तो मैंने मिस सिन्हा से पूछना ही बंद कर दिया था कि, वह मैसेज क्यों नहीं भेजते हैं? मैं खुद ही गुलदस्ते तैयार करके तय समय पर मैसेज सिन्हा के पास गुलदस्ते भेजने लगा। और उस तरफ से जवाब आता शुक्रिया। मैं लड़कों से पूछता कि मैसेज से खुश तो थी ना? क्या उन्होंने कोई साड़ी पहन रखी थी। या कुछ और लड़के हां और ना में जवाब दे देते।
कोई वादा नही
मैं उनसे पूछना चाहता था कि वह मुस्कुराती कैसी हैं? ऐसा करते-करते मैसेज सिन्हा की एक तस्वीर मेरे अवचेतन मन में बैठ गई थी। फिर 1 दिन फैसला किया कि अब मैं खुद उन्हें फूल डिलीवर करूंगा।
कोई वादा नहीं कोई बात नहीं। फिर यह क्या था जो मैं उन्हें खुद गुलदस्ता डिलीवर करने के लिए तैयार हो गया था। शीशे के सामने खड़े खड़े मैं अपनी शक्ल देख रहा था। और यह सब बातें सोच रहा था। मैंने मेरी सबसे फेवरेट ड्रेस पहन ली। में जल्दी-जल्दी आधे घंटे में अपनी दुकान पर पहुंच गया। आज दिल में कुछ खलबली भी मची हुई थी। फिर सोचा कि उनके लिए क्या तैयार करूं। कैसे गुलदस्ता बनाया जाना चाहिए? तरह तरह के फूल और तरह तरह की वैरायटी फिर मैंने सभी फूलों से एक एक फूल चुन कर कुछ बेमेल सा गुलदस्ता तैयार कर लिया।
फिर कार्ड पर एक और नोट लिखने की बारी आई, इस बार मैंने कुमार विश्वास की एक कविता लिख दी।
कोई दीवाना कहता है,
कोई पागल समझता है।।
मगर धरती की बेचैनी को,
बस बादल समझता है।।
मैं मैसेज कर चतुर्वेदी जी के घर तक पहुंचा सागवान की लकड़ी से बने हुए दरवाजे की घंटी बजाई। सामने से किसी ने दरवाजा खोला। मैंने देखा कि एक लड़की ने दरवाजा खोला है। आधे कटे हुए बाल और जींस और ऊपर एक साधारण सफेद टीशर्ट पहन रखी थी। मैंने जैसा सोचा था वैसा मिसेज सिन्हा बिल्कुल नहीं थी।
उन्होंने मुझे कॉफी के लिए आमंत्रण दिया। मैं इस आमंत्रण के लिए तैयार नहीं था। फिर भी उनके पीछे-पीछे चला गया। मैं एक सोफा पर बैठ गया। मैंने उन्हें कहा उन्होंने अपना मैसेज भेजना बंद कर दिया था। इसलिए मैंने अपनी तरफ से मैसेज लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा मैं जानती हूं। आप गुलदस्ते का तो चार्ज करते थे। लेकिन लाइने अपनी तरफ से लिखते थे। इसीलिए मैंने शुक्रिया कहना शुरू कर दिया।
मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं? मैंने किसी की प्राइवेसी में दखल दिया था। यह बिल्कुल अप्रोफेशनल काम था। मेरे पति आर्मी में है। और उनकी अभी आउट ऑफ स्टेशन पोस्टिंग हो रखी है। ऐसे में मैं जानती थी कि तुम्हारे पास उनके मैसेज नहीं आएंगे। लेकिन तुम्हारी समझ बहुत शानदार है। मैंने तुम्हारे लिखे हुए सभी मैसेज संभाल कर रख लिए हैं। यह बातें जैसे कोई खालीपन भर रही थी।
मैं अब वहां से जाने को तैयार हो गया था। मैं जैसे ही गेट पर पहुंचा। मिसेज सिन्हा ने कहा अब गुलदस्ते मत भेजना। उनकी पोस्टिंग किसी दूसरी जगह पर हो गई हैn मैं 10:15 दिन में उनके पास पहुंच जाऊंगी। जैसे ही उन्होंने यह बातें कहीं मुझे लगा कि मैंने कोई किताब पढ़कर पूरी कर ली है।